मानगढ़ का विराट सम्मेलन : राजस्थान का जनजाती आंदोलन
• गोविन्द गिरि ने अक्टूबर, 1913 में भीलों को बांसवाड़ा को मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्र होने के लिए संदेश भेजा, जिसमें पूंजा धीरजी व गोवपालिया ने मुख्य भूमिका निभाई।
30 अक्टूबर, 1913 को सूथ के पुलिस थानेदार ने सिपाही यूसुफ खान व गुलमोहम्मद को मानगढ़ पहाड़ी पर स्थिति का जायजा लेने भेजा। इन सिपाहियों को भोलों ने बंदी बना लिया। इससे बांसवाड़ा, डूंगरपुर व इंडर राज्य के शासक भयभीत हो गए। उन्होंने एजीजी से गोविन्द गिरि को गिरफ्तार करने की प्रार्थना की।
10 नवम्बर, 1913 तक मेवाड़ भील कोर की राजपूत रेजीमेंट, 104 वेलेजली राइफल्स (बड़ौदा) एवं जाट रेजीमेंट (अहमदाबाद) के सैनिकों ने मानगढ़ पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया।
• 17 नवम्बर, 1913 को आश्विन पूर्णिमा (स्रोत पुरानी RBSE, बी.एल पनगाड़िया आश्विन पूर्णिमा) के दिन कर्नल शटन के आदेश पर मेजर हैमिल्टन, मेजर एस. बेले व कैप्टन स्टॉक्ले की अगुवाई में संयुक्त सेना ने अंधाधुंध गोलिया चलाई। अंग्रेजी फौजों ने मानगढ़ पहाड़ी के सामने दूसरी पहाड़ी पर तीप व मशीनगन तैनात कर रखी थी वहीं से गोला-बारूद दागने लगे।
इस भीषण नरसंहार में 1500 आदिवासी स्वी पुरुष घटना पर ही शहीद हो गए। हजारों घायल हो गए।
• अंग्रेजी दस्तावेजों के अनुसार कुल 100 भील मारे गये तथा 900 भीलों को बन्दी बनाया गया।
गोविन्द गिरि और उनकी पत्नी व पूंजा धीरजी को बंदी बनाकर पहले साबरमती जेल व बाद में संतरामपुर जेल अहमदाबाद भेज दिया गया।
बम्बई सरकार ने 2 फरवरी, 1914 को संतरामपुर में एक ट्रिब्यूनल का गठन किया। विलियम एलीसन व ऑग्स्टन केप्पेल को इस ट्रिब्यूनल का सदस्य मनोनीत किया गया। गोविन्द गिरि को मृत्युदंड व पूंजा धीर को आजीवन कारावास की सजा दी गई। गोविन्द गिरि की आजीवन कारावास की सजा को आर.पी. बारी ने 10 वर्ष कारावास की सजा में बदल दिया।
बाद में वायसराय ने सजा कम कर 7 साल बाद जेल से रिहा कर दिया (12 जुलाई, 1913) तथा यह शर्त रखी की वे सूंथ, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, कुशलगढ़ एवं इंडर राज्यों में प्रवेश नहीं करेंगे।
मानगढ़ हत्याकाण्ड ‘राजस्थान में जलियावाला बाग हत्याकांड या बागड़ का जलियावाला बाग हत्याकांड’ के नाम से जाना जाता है।
• बांसवाड़ा जिले की आनंदपुरी पंचायत समिति में मानगढ़ धाम पर 2 सितम्बर, 2002 को ‘शहीद स्मारक’ का लोकार्पण किया गया। गोविन्द गिरी जेल से रिहा होने के बाद सरकारी निगरानी में अहमदाबाद संभाग के अंतर्गत पंचहमल जिले के झालोद तालुका के कम्बोई गाँव में जीवनपर्यंत रहे।
नोटः- भीलों और हरिजनों के विकास हेतु शोभालाल गुप्ता ने सागवाड़ा (डूंगरपुर) में एक आश्रम की स्थापना की।
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